हालत इतने बुरे हो गए थी कि कई बड़े अस्पताल 10-20 दिन के इलाज में 10-20 लाख रुपये ले रहे हैं, मीडियम अस्पताल भी रोजाना 40-50 हजार रुपये ले रहे हैं हालाँकि अब कई अस्पतालों ने सरकारी रेट के अनुसार बिल बनाना शुरू कर दिया है.
समस्या ये है कि डर दहशत और पैनिक की वजह से अधिकतर लोगों ने अपनी जमा पूँजी खर्च कर दी, अब प्राइवेट स्कूल भी मुंह खोल कर बैठे हैं और बची हुई जमा पूँजी पर उनकी भी नजर गड़ी हुई है, अधिकतर घरों के बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ते हैं. दाखिले का समय है ऐसे में स्कूलों ने अभिभावकों से मैसेज भेजकर पैसे मांगने शुरू कर दिए हैं.
अभिभावकों की परेशानी ये है कि निजी स्कूलों का मुंह कैसे भरेंगे। उन्हें देने के लिए पैसे कहाँ से लाएंगे। कई स्कूल वाले तो खुलेआम धमकी दे रहे हैं कि पैसे दे दो वरना आपने बच्चा आगे नहीं जा पाएगा। लोग बहुत मजबूर और परेशान हैं.
अब देखते हैं कि जनता की परेशानी का कोई हल निकलता है या उन्हें उनके हाल पर छोड़ दिया जाएगा। सरकार से लोगों की उम्मीद है कि समस्या का समाधान जरूर निकाला जाएगा।
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