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तकलीफ आज है, अल्ट्रासाउंड 15 दिन बाद होगा, कोर्ट की तरह ESI हॉस्पिटल में भी मिलती है तारीख

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फरीदाबाद: पहले कोर्ट में तारीख पर तारीख मिलती थी, उसी रास्ते पर फरीदाबाद का ESI हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज चल पडा है. अरबों रुपये में बने AIIMS जैसे बड़े ESI हॉस्पिटल में अल्ट्रासाउंड की अच्छी सुविधा ही नहीं है, मान लो आपको पथरी या किडनी का दर्द है, गैस या पेट से जुडी अन्य कोई बीमारी है, ESI हॉस्पिटल के ही डॉक्टर अल्ट्रासाउंड कराने के लिए पर्ची देते हैं, जब पर्ची लेकर मरीज अल्ट्रासाउंड कक्ष के बाहर पहुँचते हैं तो उन्हें काउंटर पर 15-20 दिन बाद की तारीख दे देते हैं.

अब आप सोचिये, पथरी या गैस का दर्द आज हो रहा है, शरीर में तकलीफ आज है लेकिन अगर आपको 15-20 दिन बाद की तारीख मिल जाए तो कैसा लगेगा, मरीजों के होश उड़ जाते हैं, खून खौल जाता है और कई लोग नाराज होकर अपना पैसा खर्च करके बाहर इलाज करवाते हैं, ESI कर्मचारी हर महीनें अपनी सैलरी का एक हिस्सा ESI को देते हैं लेकिन इलाज के लिए उन्हें दर दर भटकना पड़ता है, अपना पैसा भी खर्च करना पड़ता है.

नीचे पर्चे में देखिये, विष्णु नाम का एक मरीज चेस्ट पेन की शिकायत लेकर अस्पताल में 29 मई को भर्ती हुआ, डॉक्टर ने 29 मई को अल्ट्रासाउंड टेस्ट के लिए लिखा, विष्णु जब पर्ची लेकर अल्ट्रासाउंड कराने गए तो उन्हें 15 जून की तारीख दे दी गयी, काफी दौड़ भाग करने के बाद उनका उसी दिन अल्ट्रासाउंड कराया गया.

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इसी तरह से सागर नाम का एक मरीज 30 जून को पथरी से पेट दर्द की शिकायत पर रात में इमरजेंसी में भर्ती हुआ है, डॉक्टर ने उसे बोला कि 9 बजे आना और अल्ट्रासाउंड करा लेना, सागर जब पर्ची लेकर अल्ट्रासाउंड कक्ष के पास पंहुचा तो उसे 15 जून की तारीख दे दी गयी. नीचे पर्चे में देखिये -

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नीचे वीडियो में देखिये, अल्ट्रासाउंड कक्ष के बाहर बैठी स्टाफ पर्ची देखते ही सभी को बोलती है, 20 मिनट बाद आना तारीख मिलेगी, 20 मिनट बिठाने के बाद स्टाफ मरीज को 15 दिन बाद की तारीख देती है, स्टिंग वीडियो में पूछने पर बताती है कि यहाँ पर फैसिलिटी नहीं है, सिर्फ दो मशीनें हैं, रोजाना 150 मरीजों को अल्ट्रासाउंड की पर्ची लेकर भेजा जाता है इसलिए हम उन्हें तारीख दे देते हैं.



क्या है सुविधाओं के आभाव का कारण

हॉस्पिटल प्रशासन एवं मैनेजमेंट में भ्रष्टाचार की वजह से मरीजों को परेशानी हो रही है, मशीनों को खरीदने में कमीशनखोरी की जाती है, हॉस्पिटल का मैनेजमेंट मरीजों के कष्ट को लेकर संवेदनशील नहीं है, फण्ड होते हुए भी अल्ट्रासाउंड मशीनें नहीं खरीदी जा रही हैं, इसके अलावा पर्याप्त मात्रा में स्टाफ भी नहीं है, अब देखते हैं कि मोदी सरकार का लेबर मंत्रालय दोषी मैनेजमेंट के खिलाफ कब और क्या कार्यवाही करता है.
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