फरीदाबाद, 1 दिसम्बर: सैकड़ों करोड़ की धोखाधड़ी के मामले में जांच को लेकर थाना सराय ख्वाजा पुलिस सवालों के घेरे में आ गई है। माना जा रहा है कि नामजद दोषियों को बचाने के चक्कर में पुलिस शिकायतकर्ता शरद अग्रवाल को जांच के नाम पर परेशान कर रही है। जिसके चलते उन्हें कई घंटे तक थाने में बैठाकर रखा जाता है और उनसे कहा जाता है कि तुम्हारा यह मामला इस थाने का नहीं था फिर तुम ने कोर्ट से यह मामला इस थाने में कैसे दर्ज करा दिया।
शिकायतकर्ता शरद अग्रवाल का कहना है कि सेक्टर-37 थाना क्षेत्र में ही उनका बैंक है जहां पर उन्होंने धोखाधड़ी के आरोपियों से लिए गए चेक अपने बैंक एकाउंट में डाले थे। जिनमें से 5 चेक बैंक कर्मियों द्वारा गायब कर दिए गए, जबकि एक चेक को लेकर उन्होंने कोर्ट में केस डाला हुआ है। इस मामले के सभी सबूत उनके पास हैं जो कि वे पुलिस को भी दे चुके हैं। लेकिन थाना सराय ख्वाजा के एसएचओ सबूतों पर गौर फरमाने की जगह थाना क्षेत्र की सीमा के मुद्दे पर ही अटके पड़े हैं।
दूसरी तरफ शरद अग्रवाल के वकील बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट एल. एन. पाराशर का कहना है कि पुलिस जांच के दौरान पीडि़त को कई घंटे तक थाने में बैठाकर रखा जा सकता है. सराय थाने में ही मुकदमा दर्ज है इसके बावजूद भी SHO साहब क्षेत्र देख रहे हैं. यह मामला थाना सराय ख्वाजा क्षेत्र का ही है इसलिए पुलिस को इस मामले में निष्पक्षता से जांच करनी चाहिए और दोषियों को गिरफ्तार करना चाहिए।
पाठकों की जानकारी के लिए बता दें पिछले दिनों थाना सराय ख्वाजा पुलिस ने कोर्ट के आदेश पर सैंकड़ों करोड़ के धोखाधड़ी के मामलों में दोषियों के खिलाफ 6 मुकदमें दर्ज करके जांच शुरू कर दी थी। वहीं पीडि़त शरद अग्रवाल का कहना है कि अगर पुलिस ने दोषियों को पकडऩे में ढील बरती तो ये लोग विदेश भी भाग सकते हैं। इससे पहले दोषियों ने मुकदमें दर्ज होने से बचने के लिए शिकायतकर्ता को न केवल धमकियां दिलाई अपितु उनके खिलाफ फिरौती मांगने का झूठा मुकदमा दर्ज कराकर इस मामले को दबाने का प्रयास किया लेकिन माननीय न्यायाधीश की दूरदर्शिता के कारण पुलिस को ये मामले दर्ज करने पड़े।
क्या है धोखाधड़ी का मामला
शरद अग्रवाल कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर डिजाइन करते हैं। उन्होंने एक सॉफ्टवेयर का निर्माण किया जिसकी कीमत हजारों करोड़ में थी। उनकी कंपनी में काम कर रहे वर्कर एक शंकर ने जो कि साजिश के तहत शरद अग्रवाल की कंपनी में काम कर रहा था एक दूसरी कंपनी बना रखी थी जिसमें दिनेश गोयनका, इम्तियाज अहमद एवं उनके साथियों ने मिलकर शरद अग्रवाल का सॉफ्टवेयर चोरी किया और अपनी कंपनी के द्वारा देश एवं विदेश में करीब सवा सौ लोगों को कम रेट में यह सॉफ्टवेयर उपयोग करने के अधिकार किराये पर देने शुरू कर दिए।
शरद अग्रवाल ने अपने कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर के कापी राइट ले रखे थे. जैसे ही उन्हें अपने साथ हुई इस धोखाधड़ी की सूचना मिली तो उन्होंने दोषियों के खिलाफ सबूत इकट्ठे करके उनके खिलाफ पुलिस में कार्यवाही करने की बात कही। इस पर तीनों दोषियों ने मिलकर उनसे माफी मांगी और इस सॉफ्टवेयर के द्वारा मिलने वाली रायल्टी में से एक हिस्सा देने की बात कही। लेकिन अग्रवाल द्वारा मना किए जाने पर उन्होंने जुर्माने के तौर पर इस चोरी एवं धोखाधड़ी के संदर्भ में 250-250 करोड़ के 6 चेक दे दिए। बाद में दोषियों ने इस पेमेन्ट को क्लीयर होने से रोकने के लिए बैंक में सैटिंग कर ली जो कि शरद अग्रवाल द्वारा उनके बैंक में चेक डालने पर एक चेक बाउंस हो गया जिसका उन्होंने कोर्ट में केस डाल रखा है जबकि पांच चेक बैंक कर्मियों ने मिलीभगत करके दोषियों को वापिस दे दिए अथवा कहीं छुपा रखे हैं।
चेक के केस से बचने के लिए दोषियों ने शरद अग्रवाल के खिलाफ फिरौती मांगने का एक केस भी दर्ज कराया जो कि जांच में झूठा पाए जाने पर खारिज हो गया। उन्हें अंडरवल्र्ड के लोगों से धमकियां भी दिलवाई गईं। आलम यह हो गया कि वकीलों ने उनका केस लडऩे से इन्कार कर दिया। लेकिन जब उन्हें चंडीगढ़ के कुछ वकीलों से न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एवं बार एसोसिएशन फरीदाबाद के पूर्व अध्यक्ष एडवोकेट एल.एन. पाराशर के बारे में पता चला तो वे कोर्ट में न्याय पाने की हिम्मत जुटा पाए। पाराशर ने इस मामले के तथ्य कोर्ट के समक्ष रखे जहां माननीय न्यायालय ने पुलिस को दोषियों के खिलाफ मुकदमें दर्ज करने के आदेश दे दिए।
थाना सराय ख्वाजा पुलिस ने शंकर कुमार इलियास उर्फ बदरुद्दीन खान, दिनेश गोयनका, इलियास शकील दुरियानी, इम्तियाज अहमद इम्तियाज छोटा इम्तियाज एवं इनकी साजिश में शामिल इस गिरोह के लोगों के खिलाफ मुकदमें नं. 1059, 1060, 1061, 1062, 1063, 1064, 1065 धारा 406, 419, 420, 465, 467, 468, 469, 470, 471, 506, 120बी, 34, आईटी एक्ट 43 एवं 66बी के तहत मामले दर्ज करके जांच शुरू कर दी है।
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