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पहले जो AAP और कांग्रेस से लड़ना चाहते थे MCF चुनाव, अब कह रहे निर्दलीय लड़ना बेहतर होगा, जानिये क्यों

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फरीदाबाद: कुछ दिनों पहले हरियाणा में नगर परिषद् और नगरपालिकाओं के चुनाव हुए थे जिसमें मुख्य लड़ाई भाजपा और निर्दलीयों के बीच हुई थी। कांग्रेस पार्टी ने चुनाव लड़ा ही नहीं था जबकि आम आदमी पार्टी का बुरा हाल हुआ था और सिर्फ एक नगरपरिषद चेयरमैन सीट जीत पायी थी। 

अगर पलवल की बात करें तो यहाँ भाजपा और निर्दलीयों के बीच मुकाबला हुआ, चेयरमैन पद पर भी भाजपा उम्मीदवार डॉ यशपाल और निर्दलीय प्रत्याशी धीरज कुमार के बीच में जोरदार टक्कर हुई और बाजी डॉ यशपाल के हाथ लगी। धीरज कुमार कुछ वोटों से हार गए। इसके अलावा पार्षद पदों पर भी भाजपा और निर्दलीयों के बीच में ही टक्कर रही। पलवल चुनाव से पहले AAP पार्टी वाले आसमान में उड़ रहे थे, इन्हें लग रहा था कि पलवल का हर वोट सिर्फ इन्हें मिलेगा लेकिन जनता ने इन्हें जोर का झटका दिया। अब AAP वाले आसमान से उतरकर जमीन पर आ चुके हैं और इन्हें समझ में आ गया है कि फरीदाबाद में इससे भी बुरा हाल हो सकता है। 

कांग्रेस पार्टी ने दिया वॉक-ओवर नहीं भुना पायी AAP

कांग्रेस पार्टी ने अपने सिम्बल पर चुनाव ना लड़ने का फैसला लेकर आम आदमी पार्टी को बढ़िया मौका दिया था लेकिन आम आदमी पार्टी यह मौका भुना नहीं पायी और पार्टी का बुरा हाल हुआ। पलवल में हार से फरीदाबाद के आप कार्यकर्ताओं का हौसला टूट गया क्योंकि फरीदाबाद के अधिकतर आप कार्यकर्ताओं ने चुनाव प्रचार में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, उस दौरान आम आदमी पार्टी की लहर भी थी लेकिन अब यह लहर शांत पड़ गयी है। 

पंजाब में मुख्यमंत्री भगवंत मान की सीट पर लोकसभा के बाई इलेक्शन में आम आदमी पार्टी चुनाव हार गयी, इसके अलावा दिल्ली में आम आदमी पार्टी के कद्दावर मंत्री सत्येंद्र जैन भी घोटाले के आरोप में तिहाड़ जेल चले गए। इन सब घटनाओं से आम आदमी पार्टी का ग्राफ बहुत तेजी से डाउन हुआ। 

MCF चुनाव में बदल रही उम्मीदवारों की सोच

कुछ ही महीनें में फरीदाबाद नगर निगम के चुनाव होने वाले हैं। आम आदमी पार्टी से कई नेता पार्षद और मेयर बनने का सपना देख रहे थे लेकिन पलवल की असफलता ने इनके हौसलों को पस्त कर दिया। अब ये भावी उम्मीदवार सोच रहे हैं कि आप पार्टी से लड़ने के बजाय निर्दलीय लड़ना अधिक फायदेमंद हो सकता है क्योंकि निर्दलीय जीतने के बाद विजेता पार्टी में शामिल होकर विकास कार्य कराये जा सकते हैं। 

यही हाल कांग्रेस से चुनाव लड़ने का सपना देखने वालों का है, उन्हें ये डर सता रहा है कि कहीं कांग्रेस पार्टी निकाय चुनावों की तरह अपने सिम्बल पर चुनाव लड़ने से इंकार ना कर दे, इनके अलावा पिछले चुनाव में भाजपा का निर्दलीय उम्मीदवारों से ही मुकाबला हुआ था, यहाँ तक कि होडल सीट भी एक निर्दलीय के खाते में चली गयी जबकि हरियाणा के कांग्रेस अध्यक्ष उदयभान खुद यहाँ से चुनाव लड़ते हैं और विधायक भी रह चुके हैं हालाँकि पिछले विधानसभा चुनाव में उनकी हार हो गयी थी। 

मुख्य मुकाबला भाजपा और निर्दलीयों के बीच

पलवल के नतीजे देखने के बाद लोगों को यही समझ में आ रहा है कि मुख्य मुकाबला भाजपा और निर्दलीयों के बीच में ही होगा। अगर कांग्रेस अपने सिम्बल पर चुनाव लड़ेगी तो आम आदमी पार्टी का और बुरा हाल होगा क्योंकि भाजपा विरोधी वोट दोनों में बंट जाएंगे। यहाँ पर निर्दलीयों को आम आदमी पार्टी और कांग्रेस से अधिक वोट मिल सकते हैं। 

यही वजह है कि दोनों पार्टियों के भावी उम्मीदवार सोच रहे हैं कि पार्टी से लड़कर हारने से बढ़िया है निर्दलीय लड़ें, इससे ना सिर्फ पैसों की बचत होगी बल्कि वोट भी अधिक मिलेंगे। अब देखते हैं कि आने वाले चुनाव में क्या होता है। 

भाजपा ने ना बदले उम्मीदवार तो होगा नुकसान

भाजपा ने एक सोची समझी रणनीति के तहत चुनाव में देरी करवाई ताकि सड़कों के निर्माण कार्य करवा सकें और विपक्षियों को सड़कों पर गड्ढे का मुद्दा ना मिल सके, भाजपा अपनी रणनीति में सफल होती हुई भी दिख रही है लेकिन फरीदाबाद नगर निगम में करीब 200 करोड़ का घोटाला और हाल में हरियाणा फार्मेसी काउंसिल में रिश्वतखोरी का मुद्दा भाजपा का नुकसान कर सकती है, अगर भाजपा ने दिल्ली की तरह चालाकी दिखाकर उम्मीदवारों को बदल दिया तो नुकसान की भरपाई हो सकती है, अगर उम्मीदवार रिपीट किये गए तो जनता निर्दलीय उम्मीदवारों पर मेहरबानी दिखा सकती है। 

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