फरीदाबाद: ESI हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज फरीदाबाद में बहुत बड़ा रेफर-घोटाला और इंटरव्यू-घोटाला चल रहा है, कुछ डॉक्टरों ने प्राइवेट अस्पतालों से साठ-गाँठ कर रखी है, मरीजों का खुद इलाज करने के बजाय उन्हें प्राइवेट अस्पतालों में रेफर किया जाता है और बदले में प्राइवेट अस्पताल उन्हें मोटा कमीशन देते हैं, सभी बीमारियों का कमीशन अलग अलग है, जितना बड़ी बीमारी और जितना मोटा बिल उतना ही मोटा कमीशन. मतलब अगर मरीज को कैंसर हुआ तो लाखों का कमीशन, अगर ह्रदय की बीमारी तो अलग कमीशन, ऑपरेशन का अलग कमीशन. कई बार बड़ी बीमारी नहीं होती तो जानबूझकर बड़ी बीमारी दिखा दिया जाता है और मरीजों की जान की परवाह ना करके सिर्फ मोटे कमीशन की परवाह की जाती है.
हमें ऐसी भी खबर मिली है कि कई बार गंभीर बीमारी ना होते हुए भी बीमारी दिखाकर प्राइवेट अस्पतालों में भेज दिया जाता है और वहां पर मरीजों के सभी टेस्ट करवाकर, कुछ दिन बिस्तर पर लिटाकर लाखों रुपये का बिल बनवा दिया जाता है और बदले में रेफर करने वाले डॉक्टर को मोटा कमीशन दे दिया जाता है.
हमारे पास ऐसी भी सूचना है कि जिन व्यक्ति का बाईपास करना चाहिए उन्हें ऐसे अस्पतालों में भेजा जाता है जहाँ पर सिर्फ छल्ले लगते हैं, मरीजों को कई छल्ले लगाकर उनका शरीर कमजोर कर दिया जाता है, अगर ऐसे लोगों का बाईपास करवा दिया जाए तो उन्हें अधिक लाभ हो सकता है लेकिन कमीशनखोर डॉक्टर उन्हें बाईपास करने वाले अस्पतालों में भेजने के बजाय छल्ला लगाने वाले अस्पताल में भेज देते हैं और कमीशन के चक्कर में मरीजों की जान के साथ खिलवाड़ करते हैं.
ESI अस्पताल में उच्च अधिकारियों की शह पर करीब चार-पांच डॉक्टर रेफर घोटाला कर रहे हैं और हर महीना करोड़ों रुपये का बिल बनवा रहे हैं, नीचे फोटो में देखिये, वर्ष 2018 (जनवरी-दिसम्बर) में Tertiary Care में 12191 मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रेफर किया गया जबकि सेकंडरी केयर के तहत 4200 मरीजों को प्राइवेट अस्पताल में रेफर किया गया, कुल मिलाकर 16391 मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रेफर किया गया.
उपरोक्त 16391 मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में भेजकर हर महीनें लगभग 6-7 करोड़ रुपये का बिल बनवाया गया. एक साल में करीब 70-80 करोड़ रुपये का बिल बनवाया गया. अगर ESI अस्पताल में Sanctioned की गयी निम्लिखित लगभग 550 भर्तियाँ कर दी जातीं और सभी विभागों में सुविधाएं बढ़ा दी जातीं तो मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रेफर करने की जरूरत ना पड़ती और हर साल सरकार को करोड़ों रुपये का नुकसान ना पहुंचाया जाता लेकिन इंटरव्यू तो होते हैं लेकिन पदों पर बहाली नहीं होती. अक्टूबर 2018 में 550 पदों पर इंटरव्यू लिए गए थे लेकिन अभी तक पदों पर बहाली नहीं हुई, देखिये -
उपरोक्त विज्ञापन में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर के करीब 550 पदों पर इंटरव्यू हुए थे लेकिन अभी तक किसी भी पद पर बहाली नहीं हुई जिससे साफ़ साफ़ दिख रहा है कि घोटालेबाज अधिकारियों और कमीशनखोर डॉक्टरों को पता है कि भर्तियाँ होते ही रेफर का खेल ख़त्म हो जाएगा क्योंकि प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर जैसे पदों पर बैठे लोग सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञ होते हैं, भ्रष्टाचारियों को पता है कि अगर पदों पर बहाली हो गयी तो उन्हें कमीशन मिलना बंद हो जाएगा, वे लूट नहीं पाएंगे इसलिए जान बूझकर पदों की बहाली में देरी की जा रही है ताकि ये लोग अधिक से अधिक कमीशन लूट सकें.
हमें यह भी खबर मिली है कि असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए इंटरनल कैंडिडेट भी मौजूद हैं लेकिन इंटरव्यू में शामिल होने के बाद भी उनका चयन नहीं किया जा रहा है. असिस्टेंट प्रोफेसर कम्युनिटी मेडिसिन के लिए 4 मई 2017 से अब तक करीब 17 बार इंटरव्यू हो चुका है, एक इंटरनल कैंडिडेट हर बार इंटरव्यू में शामिल होता है लेकिन पद के काबिल होने के बाद भी उनका चयन नहीं होता.
हमें यह भी खबर मिली है कि एक रेफर-घोटाले के अलावा इंटरव्यू-घोटाला भी चल रहा है, बार बार इंटरव्यू कराये जाते हैं, बार बार इंटरव्यू लेने वाले अधिकारियों का TA/DA और Honorarium बनाया जाता है, सभी इंटरव्यू में भ्रष्ट अधिकारियों के ख़ास डॉक्टर ही बुलाये जाते हैं, ये लोग अपना TA/DA/HR बनाने के लिए बार बार इंटरव्यू के लिए विज्ञापन देते हैं, हर इंटरव्यू में लाखों रुपये का खर्च आता है, सरकार को करोड़ों रुपये का चूना इंटरव्यू लेने में पहुंचाया जा रहा है. अब खुद सोचिये असिस्टेंट प्रोफेसर कम्युनिटी मेडिसिन के लिए 4 मई 2017 से अब तक करीब 17 बार इंटरव्यू हुआ लेकिन चयन किसी का नहीं किया गया.
क्या होगी दोनों घोटालों की जांच
अब सवाल यह है कि रेफर-घोटाले और इंटरव्यू घोटाले की क्या जांच होगी, जांच होगी तो कैसे होगी, हमें खबर मिली है कि ESI अस्पताल के डीन असीम दास का पांच वर्षों से ट्रान्सफर ही नहीं हुआ है जबकि ESI ट्रान्सफर पालिसी के अनुसार पांच साल में ट्रान्सफर कर दिया जाता है, देखए ये फोटो -
उपरोक्त पत्र में साफ़ साफ़ दिख रहा है कि मेडिकल ऑफिसर की अधिकतम सर्विस 5 साल होगी, उसके बाद वो ऑटोमैटिकली ट्रांसफ़र की श्रेणी में आ जाएगा. लेकिन असीम दास का पांच साल में भी ट्रान्सफर नहीं हुआ, यही नहीं हमारी जानकारी में यह भी सामने आया है कि उनपर एक डॉक्टर ने मेंटल हरासमेंट करने और प्रशासनिक पद के दुरूपयोग के आरोप लगाया है और केंद्रीय लेबर और स्किल डेवलपमेंट और लेबर मंत्री तक शिकायत भेजी है, इसके बावजूद भी डीन के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई.
रेफर-घोटाला, इंटरव्यू घोटाला और लाखों मरीजी की जिंदगी से खिलवाड़ के बाद भी भ्रष्ट अधिकारियों और कमीशनखोर डॉक्टरों पर कार्यवाही ना होना यह साबित करता है कि यह नेक्सस काफी दूर तक फैला हुआ है, मंत्रियों का इनपर हाथ है, अब प्रधानमंत्री कार्यालय ही इनके खिलाफ कुछ एक्शन ले सकता है. अगर हो सके तो इसकी CBI जांच होनी चाहिए, सभी रिकार्ड्स को चेक करना चाहिए, कमीशनखोर डॉक्टरों की संपत्ति की भी जांच की जानी चाहिए और इनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए क्योंकि ये लोग ना सिर्फ सरकार से धोखाधड़ी करके सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा रहे है बल्कि मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं. कई बार इनकी लापरवाही से मरीजों की जान चली जाती है, ESI कार्ड होल्डर लोग अधिकतर गरीब होते हैं इसलिए पुलिस प्रशासन में भी उनकी सुनवाई नहीं होती. देखिये ये वीडियो जो एक दो महीनें पहले का है - एक बच्चे की जान चली गयी लेकिन इस गरीब को न्याय नहीं मिला.
उपरोक्त विज्ञापन में प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर के करीब 550 पदों पर इंटरव्यू हुए थे लेकिन अभी तक किसी भी पद पर बहाली नहीं हुई जिससे साफ़ साफ़ दिख रहा है कि घोटालेबाज अधिकारियों और कमीशनखोर डॉक्टरों को पता है कि भर्तियाँ होते ही रेफर का खेल ख़त्म हो जाएगा क्योंकि प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर जैसे पदों पर बैठे लोग सभी क्षेत्रों में विशेषज्ञ होते हैं, भ्रष्टाचारियों को पता है कि अगर पदों पर बहाली हो गयी तो उन्हें कमीशन मिलना बंद हो जाएगा, वे लूट नहीं पाएंगे इसलिए जान बूझकर पदों की बहाली में देरी की जा रही है ताकि ये लोग अधिक से अधिक कमीशन लूट सकें.
हमें यह भी खबर मिली है कि असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए इंटरनल कैंडिडेट भी मौजूद हैं लेकिन इंटरव्यू में शामिल होने के बाद भी उनका चयन नहीं किया जा रहा है. असिस्टेंट प्रोफेसर कम्युनिटी मेडिसिन के लिए 4 मई 2017 से अब तक करीब 17 बार इंटरव्यू हो चुका है, एक इंटरनल कैंडिडेट हर बार इंटरव्यू में शामिल होता है लेकिन पद के काबिल होने के बाद भी उनका चयन नहीं होता.
हमें यह भी खबर मिली है कि एक रेफर-घोटाले के अलावा इंटरव्यू-घोटाला भी चल रहा है, बार बार इंटरव्यू कराये जाते हैं, बार बार इंटरव्यू लेने वाले अधिकारियों का TA/DA और Honorarium बनाया जाता है, सभी इंटरव्यू में भ्रष्ट अधिकारियों के ख़ास डॉक्टर ही बुलाये जाते हैं, ये लोग अपना TA/DA/HR बनाने के लिए बार बार इंटरव्यू के लिए विज्ञापन देते हैं, हर इंटरव्यू में लाखों रुपये का खर्च आता है, सरकार को करोड़ों रुपये का चूना इंटरव्यू लेने में पहुंचाया जा रहा है. अब खुद सोचिये असिस्टेंट प्रोफेसर कम्युनिटी मेडिसिन के लिए 4 मई 2017 से अब तक करीब 17 बार इंटरव्यू हुआ लेकिन चयन किसी का नहीं किया गया.
क्या होगी दोनों घोटालों की जांच
अब सवाल यह है कि रेफर-घोटाले और इंटरव्यू घोटाले की क्या जांच होगी, जांच होगी तो कैसे होगी, हमें खबर मिली है कि ESI अस्पताल के डीन असीम दास का पांच वर्षों से ट्रान्सफर ही नहीं हुआ है जबकि ESI ट्रान्सफर पालिसी के अनुसार पांच साल में ट्रान्सफर कर दिया जाता है, देखए ये फोटो -
उपरोक्त पत्र में साफ़ साफ़ दिख रहा है कि मेडिकल ऑफिसर की अधिकतम सर्विस 5 साल होगी, उसके बाद वो ऑटोमैटिकली ट्रांसफ़र की श्रेणी में आ जाएगा. लेकिन असीम दास का पांच साल में भी ट्रान्सफर नहीं हुआ, यही नहीं हमारी जानकारी में यह भी सामने आया है कि उनपर एक डॉक्टर ने मेंटल हरासमेंट करने और प्रशासनिक पद के दुरूपयोग के आरोप लगाया है और केंद्रीय लेबर और स्किल डेवलपमेंट और लेबर मंत्री तक शिकायत भेजी है, इसके बावजूद भी डीन के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई.
रेफर-घोटाला, इंटरव्यू घोटाला और लाखों मरीजी की जिंदगी से खिलवाड़ के बाद भी भ्रष्ट अधिकारियों और कमीशनखोर डॉक्टरों पर कार्यवाही ना होना यह साबित करता है कि यह नेक्सस काफी दूर तक फैला हुआ है, मंत्रियों का इनपर हाथ है, अब प्रधानमंत्री कार्यालय ही इनके खिलाफ कुछ एक्शन ले सकता है. अगर हो सके तो इसकी CBI जांच होनी चाहिए, सभी रिकार्ड्स को चेक करना चाहिए, कमीशनखोर डॉक्टरों की संपत्ति की भी जांच की जानी चाहिए और इनके खिलाफ कार्यवाही होनी चाहिए क्योंकि ये लोग ना सिर्फ सरकार से धोखाधड़ी करके सरकारी खजाने को नुकसान पहुंचा रहे है बल्कि मरीजों की जान से खिलवाड़ कर रहे हैं. कई बार इनकी लापरवाही से मरीजों की जान चली जाती है, ESI कार्ड होल्डर लोग अधिकतर गरीब होते हैं इसलिए पुलिस प्रशासन में भी उनकी सुनवाई नहीं होती. देखिये ये वीडियो जो एक दो महीनें पहले का है - एक बच्चे की जान चली गयी लेकिन इस गरीब को न्याय नहीं मिला.
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि फरीदाबाद में बने इस अस्पताल पर फरीदाबाद पलवल के 4-5 लाख मरीज आश्रित हैं लेकिन घोटालेबाज अधिकारियों और कमीशनखोर डॉक्टरों की वजह से मरीजों को ना इधर उधर भागना पड़ता है बल्कि कई मरीकों की जान भी चली जाती है, पैसे के चक्कर में छोटी बीमारियों को भी बड़ी बीमारी बताकर प्राइवेट अस्पतालों में रेफर कर दिया जाता है, कई लोगों का बिना जरूरत के ऑपरेशन कर दिया जाता है, कई लोगों को कैंसर ना होते हुए भी कैंसर बता दिया जाता है.
जरूरी नहीं कि यह घोटाला सिर्फ फरीदाबाद में हो रहा हो, ऐसे और भी कई हॉस्पिटल हो सकते हैं, अगर इस हॉस्पिटल की जांच हो जाए और भ्रष्टाचारियों को सजा दे दी जाए तो सभी भ्रष्ट अधिकारी और कमीशनखोर डॉक्टर सुधर जाएंगे. इस हॉस्पिटल के मैनेजमेंट के खिलाफ कई बार धरना प्रदर्शन हुआ, कई बार विरोध हुआ लेकिन कोई कार्यवाही नहीं हुई.
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