नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) एक नए आदेश की वजह से ना सिर्फ ईंटों के दाम काफी बढ़ जाएंगे बल्कि लाखों लोगों की नौकरी भी जाएगी. दिल्ली एनसीआर में प्रदूषण कम करने के लिए NGT ने ईंट के सभी भट्टों को बंद करने के आदेश दिए हैं. ईंटों की पथाई का काम भी बंद करवा दिया गया है जिसकी वजह से लाखों मजदूर बेरोजगार होने वाले हैं, यही नहीं NGT के अगले आदेश में जब भट्टों चालू होंगे तो भी ईंटों की पथाई और पकाने में कई महीनें लग जाएंगे जिसकी वजह से घर बनाना भी मंहगा होगा, लोगों की नौकरी भी जाएगी.
मंहगी होने लगीं ईंटें
हथीन में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश पर आस पास के गांवों में बन्द पडे भटटों के कारण ईंटों के भाव में जबरदस्त इजाफा हुआ है। लोगों को अपने घर बनाने के लिए 1100 से 1300 रूपये प्रति हजार का अतिरिक्त बोझ उठाना पड रहा है। भट्टे पर कार्य करने वाले कर्मचारियों के अनुसार इस भाव में अभी और इजाफा होने उम्मीद है। आने वाले समय में भट्टा जितने दिन भी बन्द रहेंगे उतना ही ईंटों के दाम बढेंगे। और प्रदूषण पर जिस तरह से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने कडा रूख अपनाया है उसे देख कर आने वाले समय में भट्टा मालिकों को राहत मिलने की उम्मीद कम ही नजर आ रही है।
भट्टों को किया गया बंद
हथीन के गांव भंगूरी, कलसाडा, मरोखडा, कोट, मानपुर, पहाडी, स्वामीका आदि गांवों में कई दर्जनों से भी ज्यादा भट्टे हैं जिनसे पूरे क्षेत्र में ईंटों की आपूर्ति होती है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राजधानी में बढते प्रदूषण के लेकर एनसीआर में किसी भी प्रकार से धुंवा पैदा करने वाली ईकाइयों पर तत्कालीन रोक लगा दी थी। जिसके चलते करीब दो हफ्तों से भट्टे बन्द पडे हैं। इस कारण मजदूर वर्ग की समस्या तो बढी ही है साथ ही नई ईंटों के ना बन पाने से ईंटों के दामों में 20 से 30 प्रतिशत की बढोतरी हो गयी है। मानपुर के एक भट्टे के मालिक कुलदीप ने बताया कि ईंटों की खपत के कारण उनके पास माल की रोज कमी हो रही है। अगर भट्टों को चलाने के आदेश जल्द आ भी जाते हैं तो नई ईंटों के तैयार होने में दो से तीन माह का समय लग जायेगा। इस कारण आने वाले समय में ईंटों के दामों में 50 प्रतिशत तक बढोतरी होने की उम्मीद है।
मजदूरों पर रोजी रोटी का संकट
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की मार केवल भट्टा मालिकों या खरीददार पर ही नहीं बल्कि मजदूर वर्ग पर भी पडी है। भट्टों पर ईंट पाथने का काम करने वाले हथीन निवासी सुरेश ने बताया कि उनका काम भट्टों के लिए ईंट पाथना और उन्हें पकाने वाले स्थल तक पंहुचाना होता है। इस के लिए वो दैनिक रूप में पैसा लेते है। इसी कार्य से उनका घर चलता है। भट्टों के बन्द होने से उनका काम धंधा भी बन्द हो गया है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का उठाया गया कदम बेशक प्रदूषण को रोकने के लिए फायदेमंद रहा हो परन्तु उससे होने वाले अर्थिक नुकासान की मार गरीब व मध्यवर्गीय परिवारों पर ही पडी है।
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