फरीदाबाद: शहर में ESI सिस्टम इतना गड़बड़ है कि इसे सुधारने की तुरंत जरूरत है, जनता इस सिस्टम से इतनी दुखी हो चुकी है कि लोकसभा चुनाव में भाजपा के खिलाफ अपना गुस्सा भी दिखा सकती है हालाँकि इसके लिए ESI प्रशासन और अधिकारी जिम्मेदार है.
NIT - 3 में ESI हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज नाम से एक बड़ा हॉस्पिटल है, अगर इमारत की तुलना की जाए तो दिल्ली के AIMS को पूरी टक्कर देता है लेकिन अगर सुविधाओं की बात करें तो यह मरीजों के लिए नरक है. यहाँ का प्रशासन इतना लापरवाह और संवेदनहीन है कि मरीजों की परेशानी समझता ही नहीं है.
प्राइवेट संस्थानों में काम करने वाले गरीब मजदूर और कर्मचारी हर महींने अपनी सैलरी से हजारों रुपये देकर ESI कार्ड बनवाते हैं ताकि उन्हें उचित इलाज मिल सके लेकिन तीन नंबर के बड़े अस्पताल में मरीजों को जानवरों की तरह दौडाया जाता है, OPD के लिए लम्बी लम्बी लाइन, कोई टेस्ट कराना है तो उसके लिए लम्बी लाइन, ब्लड टेस्ट कराना है तो लम्बी लाइन, अगर रिपोर्ट लेना है तो कई दिनों तक चक्कर लगाना पड़ता है, मतलब 100 रुपये वाले ब्लड टेस्ट के लिए 500 रुपये किराया खर्च करवा लेते हैं. इनको इतनी भी समझ नहीं है कि मरीज इतना दौड़-भाग करेगा तो उसे फायदा क्या मिला ESIC में पैसे जमा करने का.
जानवरों की तरह करवाया जाता है मरीजों को दौड़भाग
ESI प्रशासन इतना लापरवाह है कि दवाइयों के लिए भी मरीजों को इधर उधर भगाता है, घंटों इन्तजार करने के बाद डॉक्टर को दिखाने का मौका मिलता है, डॉक्टर दवाइयाँ लिखते हैं, मरीज लोग अस्पताल के मेडिकल स्टोर के बाहर लाइन लगाते हैं, काफी देर बाद उनका नंबर आता है तो केमिस्ट आधी दवाइयां अन्दर से देते हैं और आधी दवाइयां लेने के लिए छोटी ESI में भेज देते हैं, इसके बाद मरीज किराया-भाडा खर्च करके छोटी ESI में जाते हैं तो वहां पता चलता है कि कुछ टेबलेट वहां पर भी नहीं हैं, इसके बाद मरीज से कहा जाता है कि ये दवा मेडिकल स्टोर से ले लेना और हमें बिल दिखा देना, आपका पैसा मिल जाएगा, इसके बाद मरीज फिर से किराया-भाडा खर्च करके मेडिकल स्टोर पर जाता है, दवा लेता है और बिल बनवाता है, उसके बाद मरीज फिर से किराया भाडा खर्च करके बिल छोटी ESI में जमा करता है और कई दिनों तक चक्कर लगाने के बाद उसका पैसा मिलता है. कई बार 10 रुपये की दवा के लिए इतना परेशान किया जाता है कि मरीज लोग अपने पैसे से मेडिकल स्टोर पर दवाइयाँ खरीद लेते हैं और बिल जमा करने के झंझट में फंसते ही नहीं.
मरीजों की परेशानी को लेकर हमने हॉस्पिटल के प्रशासन से बात की तो उन्होंने कहा कि हॉस्पिटल में व्यवस्थाएं विकसित हो रही हैं, सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं, एक दो साल में मरीजों को अच्छी सुविधाएं मिलेंगी. लेकिन सवाल यह है कि ये सब काम थोड़ी स्पीड से कर लें ताकि मरीजों को परेशानी ना हो.
हमें खबर मिली है कि अस्पताल में भ्रष्टाचार और घोटालों की वजह से सुविधाएं नहीं लाई गयीं. मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में रिफर करके कमीशन खाया जाता है, भ्रष्ट डॉक्टर मरीजों को जानवर समझते हैं, अच्छे डॉक्टर मरीजों का अच्छा इलाज करते हैं लेकिन जिसको कमीशन की आदत लग गयी है उसे सिर्फ पैसा दिखता है और मरीजों को झट से अपनी सेटिंग वाले प्राइवेट अस्पताल में रिफर कर देता है. इसी तरह से हॉस्पिटल में समय से स्टाफ और डॉक्टर की भर्तियाँ नहीं की गयीं. इसी वजह से आज मरीज इतना परेशान और दुखी हैं, मोदी सरकार जल्द ही प्रशासन को टाइट करे वरना लोकसभा चुनाव में जनता अपना गुस्सा दिखाएगी.
Esi me khub dauraya jata hai aur sahee se koi jwab v nhe detaa puchha jata hai to eath k jwab deya jaata hai
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