फरीदाबाद, 10 अक्टूबर: इसी महीने दो अक्टूबर को एक 8 दिन के बच्चे को गंभीर हालत में ESI हॉस्पिटल ले जाया गया था लेकिन ESI में इस वक्त गंभीर मरीजों के इलाज की कोई व्यवस्था नहीं है, रात में ड्यूटी पर एक काम चलाऊ डॉक्टर बिठा दिया जाता है जो गंभीर मरीजों को देखते ही सीधा प्राइवेट हॉस्पिटल रिफर करता है.
इस बच्चे को भी पार्क हॉस्पिटल रिफर कर दिया गया लेकिन जब बच्चे के परिवार वाले बच्चे को पार्क हॉस्पिटल में लेकर गए तो पार्क हॉस्पिटल वालों ने यह कहते हुए बच्चे को एडमिट करने से इनकार कर दिया कि उनके पास बच्चों के विशेषज्ञ सर्जन नहीं हैं इसलिए वह बच्चे को एडमिट नहीं कर सकते.
इसके बाद बच्चे को वापस ESI हॉस्पिटल लाया गया लेकिन ESI के डॉक्टर ने बच्चे की गंभीर हालत देखते हुए भी उसे एशियन या सर्वोदय जो इनके पैनल में हैं, में भेजने के बजाय दिल्ली सफदरजंग रेफर कर दिया जिसकी वजह से बच्चे की हालत और नाजुक हो गयी.
सफदरजंग के डॉक्टरों ने बच्चे को बचाने की कोशश की, उसके ICU में रखा गया लेकिन कई दिनों तक उसकी हालत सही नहीं हुई, उसके बाद उसे वेंटीलेटर पर शिफ्ट किया गया लेकिन 6 दिन तक जिंदगी के लिए जंग लड़ने के बाद बच्चे ने दम तोड़ दिया.
यहाँ पर सवाल यह है कि इतना बड़ा हॉस्पिटल होने के बाद भी कर्मचारियों को सुविधाएं क्यों नहीं मिल रही हैं, यहाँ बड़ी बड़ी इमारतें हैं जिन्हें बनाने में अरबों रुपये खर्च हुए हैं, ये पैसे गरीब मजदूरों की सैलरी से काटे जाते हैं ताकि गरीब मजदूरों को अच्छा इलाज मिल सके.
इस बच्चे को भी पार्क हॉस्पिटल रिफर कर दिया गया लेकिन जब बच्चे के परिवार वाले बच्चे को पार्क हॉस्पिटल में लेकर गए तो पार्क हॉस्पिटल वालों ने यह कहते हुए बच्चे को एडमिट करने से इनकार कर दिया कि उनके पास बच्चों के विशेषज्ञ सर्जन नहीं हैं इसलिए वह बच्चे को एडमिट नहीं कर सकते.
इसके बाद बच्चे को वापस ESI हॉस्पिटल लाया गया लेकिन ESI के डॉक्टर ने बच्चे की गंभीर हालत देखते हुए भी उसे एशियन या सर्वोदय जो इनके पैनल में हैं, में भेजने के बजाय दिल्ली सफदरजंग रेफर कर दिया जिसकी वजह से बच्चे की हालत और नाजुक हो गयी.
सफदरजंग के डॉक्टरों ने बच्चे को बचाने की कोशश की, उसके ICU में रखा गया लेकिन कई दिनों तक उसकी हालत सही नहीं हुई, उसके बाद उसे वेंटीलेटर पर शिफ्ट किया गया लेकिन 6 दिन तक जिंदगी के लिए जंग लड़ने के बाद बच्चे ने दम तोड़ दिया.
यहाँ पर सवाल यह है कि इतना बड़ा हॉस्पिटल होने के बाद भी कर्मचारियों को सुविधाएं क्यों नहीं मिल रही हैं, यहाँ बड़ी बड़ी इमारतें हैं जिन्हें बनाने में अरबों रुपये खर्च हुए हैं, ये पैसे गरीब मजदूरों की सैलरी से काटे जाते हैं ताकि गरीब मजदूरों को अच्छा इलाज मिल सके.
लेकिन फरीदाबाद का ईएसआई हॉस्पिटल और मेडिकल कॉलेज अस्पताल के नाम पर सिर्फ डब्बा है, अगर यकीन ना आये तो किसी दिन रात में जाकर देख लीजिये, एक या दो डॉक्टर रहते हैं और उन्हें सिर्फ सर्दी बुखार ठीक करना आता है.
ESI में इलाज कराने वाले कर्मचारी बताते हैं कि ESI के अस्पताल में उनका इलाज नहीं होता सिर्फ दवाएं दी जाती हैं जिसे खाकर वह पहले से भी ज्यादा बीमार हो जाते हैं, जैसे ही मरीज ESI अस्पताल या डिस्पेंसरी में जाता है, बिना उसकी जांच किये हप्ते दस दिन की दवाई दे दी जाती है, उल्टी-सीधी एंटीबायोटिक्स और दवाएं खा खाकर लोग और बीमार हो जाते हैं और जब बाहर के डॉक्टर के पास जाते हैं और शारीरिक टेस्ट करवाते हैं तब उनकी बीमारी का पता चलता है, उनका पैसा भी खर्च होता है और समय भी. ऐसे में सवाल यह उठता है कि सरकार गरीबों के पैसे क्यों काट रही है जब इलाज की सुविधा नहीं दे पा रही है, आखिर इतनी बड़ी बड़ी इमारतों का क्या फायदा.
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