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गरीबों की आवाज पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत 26 दिन से फर्जी मुक़दमे में जेल में बंद, पढ़ें क्यों

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फरीदाबाद, 6 जून: हरियाणा अब तक ब्लॉग के चीफ पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत पिछले 15 वर्षों से अपने ब्लॉग के जरिये गरीबों, मजदूरों और मजबूरों की आवाज उठाते रहे हैं। पुराने पत्रकार होने की वजह से जरूरत पड़ने पर गरीब, मजदूर, मजबूर और असहाय लोग उनसे संपर्क करते हैं और पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत गरीबों की आवाज बनकर सरकार तक उनकी बात पहुंचाते हैं और उनकी मदद करते हैं।

वही पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत पिछले 26 दिनों से जेल में बंद हैं, कानून के रखवालों ने एक फ्रॉड उद्योगपति के इशारे पर उन्हें एक जगह से किडनैप किया और उन्हें एक स्थान पर कैद करके उनपर रिश्वत लेने के फर्जी आरोप, उनपर रंगदारी मांगने के फर्जी आरोप, अवैध वसूली और ब्लैकमेलिंग के फर्जी आरोप, और उद्योगपति को जान से मारने की धमकी देने के फर्जी आरोप भी लगा दिए।

पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत को गिरफ्तार करने में कानून के रखवालों ने इतनी जल्दबाजी की जैसे वह पत्रकार नहीं कोई बहुत बड़े गैंगस्टर हों, उद्योगपति ने अन्य साजिशकर्ताओं के साथ मिलकर FIR पहले ही लिखवा ली थी, उन्हें किडनैप करके पहले से लिखी हुई FIR ऑनलाइन अपलोड कर दी गयी, कानून के रखवाले प्रवक्ता ने फटाफट प्रेस नोट जारी करके उन्हें बहुत बड़ा अपराधी बताना शुरू कर दिया, यह सब सिर्फ दो  घंटे के अंदर किया गया। कानून के रखवालों ने लॉक डाउन का फायदा उठाते हुए पत्रकार की आवाज बंद करने के उद्देश्य से यह निंदनीय कार्य किया है लेकिन कोर्ट का आधा काम बंद होने की वजह से पत्रकार को बेल नहीं मिल रही है।

पुष्पेंद्र को फर्जी मुक़दमे में क्यों फंसाया गया, साजिश क्यों रची गयी

दरअसल पुष्पेंद्र राजपूत ने जिस कंपनी के खिलाफ आवाज उठायी थी उसे शहर की सबसे बड़ी फ्रॉड और 420 कंपनी कहा जाता है, वह अपने पार्टनर को भी फर्जी मुक़दमे में फंसा चुका है। साजिश रचकर निर्दोषों को फंसाना उसका पुराना पेशा है।

इस कंपनी में काम करने वाले सैकड़ों मजदूरों को बिना नोटिस दिए निकाल दिया गया। यह कानूनन जुर्म है लेकिन कंपनी ने यह जुर्म किया, क्योंकि कंपनी की ऊंची पहुँच के चलते उसके खिलाफ आवाज उठाने की कोई भी मजदूर हिम्मत नहीं करता, अगर कोई मजदूर आवाज उठाता भी है तो उसकी जूतों से पिटाई होती है।

कंपनी ने मजदूरों और अन्य कर्मचारियों को बिना कोई हिसाब दिए सिर्फ एक - दो चेक थमा दिए गए, जिनका लाखों का हिसाब बनता था उसे सिर्फ कुछ हजार रुपये के चेक दिए गए, ना बोनस दिया गया, ना सैलरी दी गयी, ना PF जमा किया गया, ना अन्य लाभ दिए गए।

जब मजदूरों और कर्मचारियों ने वह चेक बैंक में डाले तो चेक बाउंस हो गए और मजदूरों के अकाउंट से पेनाल्टी के रूप में कुछ रुपये कट गए, मतलब मजदूरों के खाते में जो पैसे थे चेक बाउंस होने की वजह से वह भी कट गए।

चेक बाउंस होने से मजदूरों को काफी दुःख हुआ, उनके पैरों तले जमीन खिसक गयी क्योंकि लॉक डाउन में उन्हें इन्हीं पैसों का सहारा था। इसीलिए मजदूरों ने पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत से संपर्क किया और खबर दिखाकर उनकी आवाज प्रशासन तक पहुंचाने की अपील की।

पुष्पेंद्र राजपूत ने खबर लगाई तो उद्योगपति ने कई लोगों से फोन करवाकर यह कहकर खबर हटवा दी कि वह मजदूरों को पैसे दे देंगे।

जब दो दिन में मजदूरों को पैसे नहीं मिले तो पुष्पेंद्र राजपूत समझ गए कि उनसे झूठ बोला गया है और मजदूरों को धोखा दिया गया है। यही सोचकर उन्होंने खबर दोबारा 6 जून को लगा दी।

उसके बाद उद्योगपति के बेटे ने पत्रकार को साजिश में फंसाने का प्लान बनाया और एक प्रोफेशनल साजिशकर्ता को हायर करके पुलिस के साथ मिलीभगत कर ली।

उसके बाद उद्योगपति के बेटे ने पुष्पेंद्र राजपूत को यह कहकर मिलने के लिए बुलाया कि आओ आपको चाय पिलाएंगे और मजदूरों को पैसे दे दिए हैं इसका सबूत भी दिखाएंगे।

यह सोचकर पुष्पेंद्र राजपूत उससे मिलने चले गए लेकिन पहले से तय प्लान के अनुसार पुष्पेंद्र और उनके रिश्तेदार लाल सिंह को ESI चौक से किडनैप कर लिया गया और उन्हें सेक्टर 12 खेल परिसर के पास लाकर जबरदस्ती उनकी जेब में एक लिफाफा डालकर उन्हें रंदगारी के आरोप में फंसा दिया गया। साजिशकर्ताओं के पास ना तो सबूत हैं और ना ही गवाह हैं और ना ही कोई वीडियो प्रूफ है।

इसके बाद उन्हें सेंट्रल थाने में कैद करके FIR दर्ज करके हवालात में डाल दिया गया। साजिशकर्ताओं के जुल्म की इंतहा यही नहीं रुकी, पुष्पेंद्र राजपूत को रिमांड में लेकर उनका लैपटॉप ले लिया गया और रात में उन्हें थर्ड डिग्री टॉर्चर करके उनसे कोरे कागज़ पर साइन करवाए गए ताकि फर्जी आरोपों को साबित किया जा सके, इसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकी देकर उनके रिश्तेदार को उनके घर पर ले गए और घर से उनकी पत्नी द्वारा ट्यूशन पढ़ाकर जोड़े गए 40 हजार रुपये को जबरदस्ती छीन लिया गया और उसे रिकवरी दिखा दिया गया।

मतलब साजिशकर्ताओं ने उन्हें फर्जी मुकदमें में फंसाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है लेकिन इन्हें यह नहीं पता कि चालाक से चालाक साजिशकर्ता भी गुनाह करते वक्त कोई ना कोई गलती कर ही बैठता है। इनकी साजिश का कोर्ट में पर्दाफाश होगा और साजिशकर्ताओं को उनके गुनाहों की सजा मिलेगी। भगवान के घर में देर है लेकिन अंधेर नहीं है। निर्दोष को फर्जी मुक़दमे में फँसान इन्हें मंहगा पड़ेगा। 
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