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BJP उम्मीदवार बदल दिया जाता, या उम्मीदवार अपना व्यवहार बदल लेता तो NIT में भी खिल जाता कमल

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फरीदाबाद, 29 अक्टूबर: हरियाणा में भाजपा की सरकार बन चुकी है, फरीदाबाद की 9 में से 7 सीटों पर कमल खिला है और निर्दलीय विधायक नयनपाल रावत के भाजपा को समर्थन देने के बाद 8 सीटों पर कमल खिल चुका है। अब सिर्फ NIT फरीदाबाद विधानसभा कांग्रेस के खाते में है। 

चुनाव से पहले हमने पूरी NIT विधानसभा का सर्वे किया। अधिकतर लोग कमल खिलाना चाहते थे लेकिन उन्हें उम्मीदवार और उनका व्यवहार पसंद नहीं था इसलिए यहाँ पर कांग्रेस की जीत हुई, अगर भाजपा ने उम्मीदवार बदल दिया होता या उम्मीदवार अपना व्यवहार बदल लेता तो यहाँ पर भी कमल खिल जाता। 

कोई भी विधायक अपने क्षेत्र का 100 फ़ीसदी विकास नहीं कर सकता, यहाँ तक कि अगर प्रधानमंत्री मोदी को किसी क्षेत्र का विधायक बना दिया जाए तो भी वह 100 फ़ीसदी विकास नहीं कर पाएंगे, कुछ ना कुछ कमी रह ही जाती है लेकिन विधायक को उस बात को स्वीकार करना चाहिए और जनता को भी यह बात समझानी चाहिए। 

नगेंदर भड़ाना इनेलो पार्टी से चुनाव जीतकर विधायक बने थे, कोई भी सत्ताधारी पार्टी विपक्षी पार्टी के विधायक को पैसे नहीं देती लेकिन नगेंदर भड़ाना ने भाजपा सरकार से तालमेल बिठाया, तालमेल बिठाने में डेढ़-दो साल निकल गए। तालमेल बिठाने के बाद क्षेत्र का विकास कराने के लिए नगेंदर भड़ाना के पास सिर्फ 3 साल बचे थे, इन तीन वर्षों में उन्होंने कई रोड बनवाये, कई गलियां भी बनवायीं, कई कॉलोनियों में सीवर बिछाने के लिए सड़कों को खोद दिया गया लेकिन तय समयानुसार काम नहीं हो पाया जिसकी वजह से जलभराव की समस्या पैदा हो गयी, नगेंदर भड़ाना जनता को यह भी नहीं समझा पाए कि ये सब काम आपके ही लिए किये जा रहे हैं। 

तीन वर्षो में भाजपा ने उन्हें करीब पौने 300 करोड़ रुपये दिए। अगर समझदारी से विचार करें तो NIT का विकास करने, सीवर, रोड, बिजली के खम्बे, लाइट, वाटर पाइपलाइन, गलियां पक्की करने, पार्क बनाने और जल निकासी की व्यवस्था करने के लिए कम से कम 5000 करोड़ रुपये रुपये चाहिए। इतना पैसा भाजपा दूसरी पार्टी के विधायक को कभी दे ही नहीं सकती। इसीलिए इस बार नगेंदर भड़ाना को भाजपा की टिकट दी गयी। 

नगेंदर भड़ाना ने कुछ महीनों पहले भाजपा ज्वाइन की थी। उन्होंने भाजपा तो ज्वाइन कर ली लेकिन NIT मंडल के भाजपा कार्यकर्ताओं को अपना नहीं बना पाए। अगर उन्होंने भाजपा कार्यकर्ताओं, क्षेत्र के पार्षदों को अपना बना लिया होता तो ये कार्यकर्ता उन्हें चुनाव जिताने के लिए जी जान से जुट जाते और नगेंदर भड़ाना को हार का मुंह ना देखना पड़ता। 

चुनाव प्रचार के दौरान नगेंदर भड़ाना अकेले ही अपनी ढपली बजाते रहे, उनके साथ ना तो भाजपा कार्यकर्ता दिखे और ना ही संघ के कार्यकर्ता। इससे जनता में उनके प्रति निगेटिव सन्देश गया कि जब भाजपा कार्यकर्ता ही उनका साथ नहीं दे रहे हैं तो हम उन्हें वोट क्यों दें, नगेंदर भड़ाना कई क्षेत्रों में प्रचार करने गए ही नहीं। वह सिर्फ अपने पक्के वोट बैंक को साधने में लगे रहे। उन्हें गुर्जर वोटबैंक पर अधिक भरोसा था इसलिए गुर्जर महापंचायत करके अपने लिए समर्थन माँगा लेकिन उन्हें इसका सबसे अधिक नुकसान हुआ क्योंकि जाट सहित अन्य समाज के लोग उनसे नाराज हो गए। 

2014 में नगेंदर भड़ाना का स्वभाव जनता को बहुत पसंद था। सबसे मिलना, सबसे राम राम करना। जनता को उनका सिंपल और साधारण स्वरूप बहुत पसंद था। पानी सप्लाई करके उन्होंने पहले ही जनता का दिल जीत लिया था। 2019 चुनाव में वह एक विधायक के रूप में चुनाव प्रचार करने गए। जनता को उनसे उम्मीद थी कि उनकी गली में आकर वह वोट जरूर मांगेगे और काम में जो कुछ कमी रह गयी है उसके लिए माफी मांगेंगे लेकिन नगेंदर भड़ाना ने कई कॉलोनियों में प्रचार ही नहीं किया। कमी-बेसी के लिए जनता से माफी भी नहीं मांगी। अपने ही गुरूर में पड़े रहे, भाजपा कार्यकर्ताओं और संघ को भी अपने साथ नहीं लिया  जो घर घर जाकर उनके काम का प्रचार करें और जनता को भाजपा सरकार का फायदा बताएं। 

यही सब वजहें उनकी हार का कारण बनी। अगर वह अपना स्वभाव बदल लेते और विकास कार्यों में कमी-बेसी के लिए जनता से माफी मांग लेते तो न सिर्फ उनकी जीत होती, हो सकता है कि उन्हें कोई मंत्री पद भी मिल जाता। अब सरकार भाजपा की है, विधायक कांग्रेस का है। पता नहीं कोंग्रेसी विधायक को विकास के लिए पैसे मिलेंगे या जनता को पांच साल इसी हालत में गुजारने पड़ेंगे। 
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