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LN पाराशर के जुटाए सबूत, बिना नक्षा पास कराए भू-माफियाओं ने मटियामहल की जमीन पर ईमारत

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फरीदाबाद: भूमाफियाओं की भेंट चढ चुके बल्लबगह  स्थित मटिया महल के मामले में बार एसोसिएशन के पूर्व प्रधान एवं न्यायिक सुधार संघर्ष समिति के अध्यक्ष एडवोकेट एल. एन. पराशर ने एक ओर सनसनीखेज खुलासा किया है।पाराशर ने बताया कि मटिया महल को धराशायी कर उसकी जमीन पर भूमाफियाओं ने जो मल्टीस्टोरी बिल्डिंग खडी की है उसका नगर निगम से कोई नक्शा पास नहीं हुआ है। इस जमीन पर बिल्डिंग बनाने के लिए भूमाफियाओं ने नगर निगम के कुछ अधिकारियों के साथ मिलीभगत कर फर्जी तौर पर रेजिडेंशियल नक्शा बनवाकर यहां कॉमर्शियल बिल्डिंग खडी कर डाली है।

इसका खुलासा आरटीआई के द्वारा हुआ है। पाराशर ने बताया कि उन्होंने अपने एक साथी वकील योगिन्द्र गोयल से मटिया महल की जमीन पर हुए निर्माण के संबंध में आरटीआई लगवाई थी। जिसमें प्रशासन से जानकारी मांगी गई थी कि वर्ष 2015 से अब तक इस जमीन पर भवन निर्माण के लिए कोई नक्शा पास किया गया है या नहीं। यदि कोई नक्शा पास नगर निगम से किया गया है तो उसकी कापी उपलब्ध कराई जाए। प्रशासन की ओर से आरटीआई का जवाब मिला कि इस जमीन का 2015 से अब तक कोई नक्शा पास नहीं किया गया है। पाराशर का कहना है कि वह इस जमीन की रजिस्ट्री में हुए फर्जी वाडे का भी खुलासा कर चुके हैं। अब वह अदालत के मार्फत इस जमीन की रजिस्ट्रयों को कैसिल कराकर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ एफ. आई. आर. दर्ज कराऐंगे। इससे पहले भी वह वीपी स्पेसज में हुए फर्जी रजिस्ट्री घोटाले में संबंधित अधिकारियों व इससे जुडे लोगों के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज करा चुके हैं।

 पाराशर ने बताया कि वर्ष 2004 में प्रदुमन सिंह द्वारा मटिया महल गिराने पर तत्कालीन एसडीएम के आदेश पर तहसीलदार ने प्रदुमन के खिलाफ सिटी थाना बल्लभगढ़ में एफ. आई. आर. भी दर्ज कराई थी। पाराशर का कहना है कि जब यह जमीन सरकारी थी तभी महल गिराने वाले के खिलाफ एफ.आई. आर दर्ज कराई गई थी। फिर एकाएक यह जमीन कैसे निजी संपत्ति हो गई। फर्जी तौर पर नगर निगम ने इसका रेजिडेंशियल नक्शा पास कर यहां मल्टी स्टोरी बिल्डिंग बनवा दी। इसमें नगर निगम कर्मचारियों के खिलाफ भी वह एफ. आई. आर. दर्ज कराऐंगे। साथ ही  तहसील कार्यालय के कर्मचारी भी इस घपले में शामिल रहे। महल गिराया गया वर्ष 2004 में और इससे पहले ही इस मटिया महल के खसरा न. 195 की जगह की रजिस्ट्री वर्ष 2003 में ही मिलीभगत से कर दी गई। उन्होंने बताया कि मटिया महल तोडे जाने के बाद तत्कालीन जिला उपायुक्त ने इस जमीन पर बकायदा सरकारी भूमि होने का बोर्ड भी लगाया था।

पाराशर का कहना है कि जो जो अधिकारी व संबंधित लोग इस खसरा न. 195 की 786 गज जगह की रजिस्ट्री में शामिल है वह उन सभी के खिलाफ एफ.आई. आर. दर्ज कराऐंगे। पाराशर का कहना है कि मटिया महल का मुद्दा नगर निगम सदन में भी कई बार उठ चुका है। सदन ने इस जमीन के दस्तावेज देख हैरानी भी जताई थी और इस मामले की जांच विजिलेंस से कराने को लेकर प्रस्ताव पास हो गया था। इसके बाद आज तक भी इसकी जांच शुरू नहीं हो सकी। इस मामले में बड़े स्तर पर गोलमाल हुआ है। यही कारण है कि निगम अधिकारी इसकी जांच भी नहीं कराते। इस मामले में हाल ही में 31 मई को एसडीएम त्रिलोकचंद ने भी मटिया महल की जगह का निरिक्षण किया था। इस दौरान उन्होंने इस पूरी जमीन की विडियोग्राफी भी कराई थी। उन्होंने इस जमीन की जांच के लिए तहसीलदार व पटवारी को आदेश दिए थे। किंतु 15 दिन बीत जाने के बाद भी प्रशासन की ओर से इसमें भूमाफियाओं के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है। पाराशर के कहा कि इस मामले में भी कई अधिकारियों ने बड़ा गोलमाल किया है और जल्द इन अधिकारियों पर कोर्ट के माधयम से मामला दर्ज करवाऊंगा। 
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