फरीदाबाद, 4 जून: शहर की एक कंपनी महा फ्रॉड और महा - 420 है, उसने कंपनी में काम करने वाले सैकड़ों गरीब श्रमिकों के साथ धोखा कर रखा है और उनका हक़ लूट रखा है। इस कंपनी के लोग राज्य के मुखिया को अपनी जेब में बताते हुए भोले भाले और गरीब मजदूरों और अन्य कर्मचारियों के साथ धोखा करते हैं और उनका हक़ मारते हैं। गरीब मजदूर डरते हैं, किसी से शिकायत नहीं करते, कंपनी के अंदर आवाज उठाते हैं तो उनकी जूतों से पिटाई होती है। लेकिन अब कंपनी से धोखा खाये मजदूर परेशान हैं तो कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाकर अपना हक़ मांग रहे हैं और कई मजदूरों ने तो कंपनी के खिलाफ धोखाधड़ी का लीगल नोटिस भी भेज दिया है, जल्द ही सैकड़ों मजदूर अपने हक़ की लड़ाई लड़ने वाले हैं क्योंकि इस कंपनी ने श्रमिकों पर इतना अन्याय किया है कि अब श्रमिकों और कर्मचारियों का जमीर जाग गया है। उनकी मदद के लिए कोर्ट में वकीलों की एक बड़ी टीम लग चुकी है। इस टीम में काम कर रहे करीब दो दर्जन वकीलों का कहना है कि अगर 500 मजदूरों को न्याय दिलाना पड़ा तो भी वे पीछे नहीं हटेंगे और सबका हक़ सूद समेत दिलवाएंगे।
यह कंपनी 420 के नाम से मशहूर है लेकिन इस कंपनी के लोग पुलिस प्रशासन पर अपनी पकड़ रखते हैं इसलिए मिनटों में एक पत्रकार को झूठे मुक़दमे में फंसाकर जेल भेज दिया लेकिन इन्हें यह नहीं पता कि झूठा केस दर्ज करने वालों को भी अदालत में सजा मिलती है। अगर इस कंपनी के लोग यह सोचते हैं कि राज्य के मुखिया उनकी जेब में हैं तो यह उनकी ग़लतफ़हमी हैं क्योंकि राज्य के मुखिया के पास भी इसकी 420 की रिपोर्ट पहुँच चुकी है। अब राज्य के मुखिया भी इसका साथ देने से पहले कई बार सोचेंगे।
जांच-पड़ताल और खोजी पत्रकारिता की वजह से पता चला है कि इस कंपनी में सैकड़ों मजदूर और कर्मचारी हैं जिन्हें बिना नोटिस के नौकरी से निकला दिया गया है, इनका बोनस, फंड, सैलरी अन्य चीजें रोक दी गयी हैं, मजदूरों को डराकर कुछ चेक दिए गए, जिनका लाखों का हिसाब बनता है उन्हें सिर्फ कुछ हजार के चेक दिए गए और जब मजदूरों ने उस चेक को बैंक में डाला तो वो सभी चेक बाउंस हो गए। यह कानूनन जुर्म है लेकिन गरीब मजदूरों के साथ यह जुर्म हो रहा है।
इस कंपनी को जब पता चला कि मजदूर अब कोर्ट में न्याय मांगने जा रहे हैं तो कंपनी ने कुछ मजदूरों को धोखे से बुलाकर और उन्हें डरा धमकाकर उनसे चेक ले लिया और उन्हें सिर्फ 10 हजार रुपये दे दिए, मतलब जिनका लाखों का हिसाब बनता था उन्हें सिर्फ 10000 रुपये देकर कोरे कागज़ पर उनके सिग्नेचर ले लिए गए, गरीब मजदूरों के पास गुजारा करने के लिए पैसे नहीं थे इसलिए अपनी जान बचाने के लिए उन्होंने धोखेबाज कंपनी से समझौता कर लिया।
जब मजदूरों ने एक पत्रकार से संपर्क किया और न्याय की लड़ाई में पत्रकार का साथ माँगा तो पत्रकार ने खबर के माध्यम से उनकी आवाज सरकार तक पहुंचाई लेकिन कंपनी ने पुलिस प्रशासन और सरकार में अपनी पहुँच का गलत इस्तेमाल करते हुए पत्रकार को एक जगह पर बुलाकर उसे झूठे मुक़दमे में फंसा दिया और सिर्फ दो घंटे में पुलिस के साथ साज बाज होकर पत्रकार पर कई नॉन बेलेबल और संगीन धाराएं लगा दीं ताकि पत्रकार को जल्दी जमानत ना मिले।
इस धोखेबाज कंपनी को शायद यह नहीं पता कि भगवान के घर में देर हैं लेकिन अंधेर नहीं है। सच्चाई को परेशान तो किया जा सकता है लेकिन पराजित नहीं किया जा सकता। न्याय भले ही देर से मिलता है लेकिन मिलता जरूर है और फर्जीवाड़ा करने वालों, गरीबों के साथ अन्याय करने वालों, निर्दोष को झूठे मुक़दमे में फंसाने वालों को सजा जरूर मिलती है, चाहे सजा अदालत दे या भगवान दे लेकिन सजा मिलेगी जरूर।
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