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फरीदाबाद में पुलिस के साथ मिलकर पत्रकारों को झूठे मुक़दमे में फंसाना आसान, कौन सुनेगा गरीबों की?

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फरीदाबाद, 17 मई: पत्रकार ही गरीबों की आवाज उठाता है, फरीदाबाद में लाखों मजदूरों को वेतन नहीं मिला, उनके पास शिकायत करने के लिए कोई प्लेटफॉर्म नहीं है, पुलिस के पास जाने पर उनकी कोई सुनवाई नहीं होती है, इसलिए वे पत्रकारों के पास चले जाते हैं ताकि उनकी आवाज पुलिस प्रशासन और सरकार तक पहुंचाई जाय।

लेकिन अब फरीदाबाद में पत्रकारों का रास्ता मुश्किल हो गया है, अब पुलिस के साथ मिलकर आसानी से पत्रकारों को फर्जी मुक़दमे में फंसाया जा सकता है, मान लो कोई पत्रकार किसी कंपनी के खिलाफ खबर चला दे तो उसे पुलिस के साथ मिलकर कहीं से भी उठाया जा सकता है और उसे ब्लैकमेल केस, रंगदारी केस, रिश्वत केस, जान से मारने की धमकी देने के केस में आसानी से फंसाया जा सकता है। बेचारा पत्रकार अपनी बेगुनाही का सबूत भी नहीं दे एकता क्योंकि कोर्ट में दो तीन साल बाद सबूत देखे जाते हैं तब तक पत्रकार का दामन दागदार बना दिया जाता है, यही नहीं पुलिस पत्रकारों को भी थर्ड डिग्री देने लगी है, उनपर मजबूरन जुर्म कबूलने का दबाव बनाया जाता है, उल्टा लटकाया जाता है, आँखों में मिर्ची डाली जाती है, इंसानियत की सभी हदें पार कर दी जाती हैं, पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत के साथ एक उद्योगपति के साथ मिलकर फरीदाबाद पुलिस ने ऐसा ही किया है. पुष्पेंद्र राजपूत के खिलाफ अनाप शनाप धाराओं में फर्जी केस दर्ज करके उन्हें नीमका जेल में बंद कर दिया गया है।

क्या है पुष्पेंद्र को फंसाने की कहानी

फरीदाबाद में Friends Auto India Limited कंपनी ने सैकड़ों मजदूरों को लॉक डाउन से पहले निकाल दिया, उन्हें वेतन भी नहीं दिया और हिसाब के नाम पर सभी मजदूरों को कुछ चेक थमा दिए गए जिसे बैंक में डालने के बाद सभी मजदूरों के चेक बाउंस हो गए और मजदूरों के खाते से चेक बाउंस की पेनाल्टी के रूप में उनकी जमा-पूँजी भी काट ली गयी। 

लॉकडाउन के दौरान वेतन ना मिलने और चेक बाउंस होने से हताश और परेशान सैकड़ों मजदूरों में से कुछ ने फरीदाबाद के haryanaabtak.com न्यूज़ पोर्टल के पत्रकार पुष्पेंद्र राजपूत से संपर्क किया और उनसे अपने पोर्टल के जरिये मजदूरों की आवाज उठाकर हरियाणा सरकार तक पहुंचाने की अपील की ताकि लॉकडाउन के दौरान उन्हें वेतन मिल सके और उनके परिवार का गुजारा हो सके। 

पुष्पेंद्र सिंह राजपूत ने यह खबर चलाई तो Friends Auto India Limited ने स्थानीय रसूखदार लोगों से पुष्पेंद्र राजपूत पर खबर हटाने का दबाव बनाया। इस शर्त पर कि Friends Auto India Limited कंपनी का मालिक सरबजीत चावला मजदूरों को एक दो दिन में पेमेंट दे देगा, पुष्पेंद्र राजपूत ने 4 मई को खबर हटा ली, लेकिन दो दिन बाद भी सरबजीत चावला ने मजदूरों को वेतन नहीं दिया और ना ही कोई अन्य आर्थिक मदद की तो, पुष्पेंद्र राजपूत ने मजदूरों की परेशानी देखते हुए फिर से 6 मई को अपने पोर्टल पर खबर लगा दी। 

उसके बाद ऊंची पहुँच रखने वाले Friends Auto India Limited कंपनी के डायरेक्टर सरबजीत चावला ने पुलिस अधिकारियों से मिलीभगत करके पुष्पेंद्र राजपूत को राजिश के तहत फंसाने की चाल चली, पुलिस से मिलकर पुष्पेंद्र राजपूत को फंसाने का जाल बना गया, उसके बाद 9 मई को मजदूरों की मदद का सबूत दिखाने के बहाने कंपनी मालिक सरबजीत चावला ने पुष्पेंद्र राजपूत को फरीदाबाद में सेक्टर 12 में बुलाया, पुलिस भी सादे भेष में सरबजीत चावला के साथ थी, पुष्पेंद्र को सरबजीत चावला ने अपनी गाडी में बिठाया और पुलिस ने उनकी जेब में लिफाफा देकर रंगे हाथ गिरफ्तार कर लिया ताकि उन्हें ब्लैकमेलर साबित किया जा सके। 

पहले से बनाये गए प्लान के अनुआर पुलिस कार्यवाही में इतनी जल्दबाजी की गयी कि पुष्पेंद्र राजपूत और उन्हें साथ बाइक पर घटनास्थल पर गए लाल सिंह के खिलाफ तत्काल IPC की धारा 384, 385, 386, 506, 34 के तहत फर्जी मुकदमा (FIR No 0248) दर्ज कर लिया गया, पुलिस कमिश्नर प्रवक्ता ने तुरंत प्रेस नोट जारी करके उन्हें ब्लैकमेलर, रंगदारी मांगने वाला और उद्योगपति को जान से मारने की धमकी देने वाला अपराधी बता दिया। इस मामले में पुलिस ने ही जज बनकर तुरंत फैसला सुना दिया और बेगुनाह पत्रकार को गुनहगार बना दिया। 

इसके बाद पुष्पेंद्र राजपूत का 2 दिन का रिमांड माँगा गया लेकिन जज ने एक दिन का रिमांड दिया, पुष्पेंद्र राजपूत का मोबाइल और लॅपटॉप ले लिया गया, उसके बाद रात में पुष्पेंद्र राजपूत को गैर-कानूनी तरीके से CIA BPTP ले जाया गया, उन्हें थर्ड डिग्री टार्चर किया गया, उनकी आँखों में मिर्ची डाली गयी, फेफड़े में ऐसा पानी डाला गया जिसमें CIA वाले कह रहे थे कि यह पानी डालने के बाद तू ढाई महीनें से अधिक समय तक जिन्दा नहीं रह सकेगा, इसके अलावा उन्हें 4 घंटे तक उल्टा लटका कर पानी में डुबोया गया। इसके बाद उन्हें जान से मारने की धमकी देकर दूसरे आरोपी लाल सिंह को CIA टीम के साथ पुष्पेंद्र राजपूत के घर भेजा गया और परिवार द्वारा इकठ्ठे किये गए 40 हजार रुपये जबरदस्ती छीन लिए गए और उसे रिकवरी में दिखा दिया गया। 

पुष्पेंद्र सिंह राजपूत पिछले 15 वर्षों से haryanaabtak.com न्यूज़ पोर्टल चला रहे हैं, हमेशा गरीबों की आवाज उठाते हैं, साधारण जिंदगी जीते हैं, उन पर 5 लाख रुपये की रंगदारी मांगने और उद्योगपति सरबजीत चावला को जान से मारने की धमकी देने के भी आरोप लगाए गए हैं जो सरासर झूठे हैं। 

उद्योगपति सरबजीत चावला का यह भी कहना है कि पुष्पेंद्र राजपूत उन्हें ब्लैकमेल कर रहे थे और 50 हजार पहले भी ले चुके थे, अब आप ही सोचिये जो कंपनी मालिक अपने मजदूरों को सैलरी नहीं दे रहा है वो किसी पत्रकार को 50 हजार रुपये कैसे दे देगा। 

कहने का मतलब ये है कि पत्रकारों के मामले में अब फरीदाबाद पुलिस ही जज बनकर फैसला कर रही है, इस मामले में पुष्पेंद्र राजपूत को फंसाने की प्लानिंग की गयी, पुलिस ने खुद तय किया कि 30 हजार रुपये लिफ़ाफ़े में भरकर ले जाना है, पुष्पेंद्र को गाड़ी में बुलाकर बिठाना है और लिफ़ाफ़े को पुष्पेंद्र की जेब में डालना है और वहीं पर उन्हें रंगे हाथ पकड़ना है। बता दें कि पुष्पेंद्र ने उद्योगपति से किसी भी रकम की डिमांड नहीं की थी, उद्योगपति ने उन्हें खुद बुलाया था। पत्रकार सभी उद्योगपतियों और समाजसेवियों से मिलते रहते हैं, अगर पत्रकारों को अपनी गाडी में बिठाकर कोई रिश्वत और ब्लैकलेमिंग में फंसा दे तो इसका मतलब है कि पत्रकारों को पुलिस कुछ समझती ही नहीं है। 
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