फरीदाबाद: अरावली के जंगलों में कई अवैध निर्माण हुए हैं, कई लोगों ने बड़े बड़े बंगले बना लिए है, सरकार एवं वन विभाग से कोई परमिशन नहीं ली गयी लेकिन सरकारी जमीन को कभी ना कभी छोड़ना ही पड़ता है, कम से में कोर्ट में अवैध निर्माण करने वालों के लिए कोई रियायत नहीं है, इसी तरह के एक अवैध निर्माण को NGT कोर्ट ने तोड़ने और कब्जाई हुई जमीन को फिर से जंगल जैसा बनाने के आदेश दिए हैं लेकिन निगमायुक्त सहित हरियाणा सरकार के 6 अफसर NGT के आदेशों को नजरअंदाज कर रहे हैं. इनके वकील NGT कोर्ट में जाते हैं और इनकी तरफ से पैरवी भी करते हैं लेकिन ये अफसर इन अवैध निर्माणों को तोड़ने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं.
क्या है मामला
सामाजिक कार्यकर्ता और पर्यावरण प्रेमी दिनेश भूटानी ने NGT कोर्ट ने अनंगपुर गाँव में खसरा नंबर 659 एवं 920 पर बने भवन को अवैध बताते हुए कहा है कि ये भवन जंगल की जमीन पर कब्जा करके बनाए गए हैं, इनके लिए कोई परमीशन नहीं ली गयी है.
किसकी है ये जमीन
मुख्यमंत्री को भी भेजी गयी है शिकायत
इस मामले में मुख्यमंत्री हरियाणा को भी एक शिकायत दी गयी है जिसमें कहा गया है कि NGT कोर्ट ने 27 सितम्बर 2018 को वन विभाग में बने अवैध निर्माण को तोड़ने के आदेश दिए थे जो कि खसरा नंबर 659 एवं 920 में गाँव अनंगपुर में अवैध कब्जा करके बनाए गए हैं. कुछ अन्य मकान भी हैं तो कान्त एन्क्लेव से लगते हुए वन विभाग की जमीन पर बनाए गए हैं. ये सभी मकान 1992 के बाद बनाए गए हैं और कुछ तो 2000 के बाद बने हैं, गूगल पर इसे चेक किया जा सकता है. अतः आपसे निवेदन है कि इन अवैध निर्माणों को तोड़ने की कृपा करें एवं NGT कोर्ट के आदेश का पालन करें.
मुख्यमंत्री को पत्र लिखे जाने के बाद भी इन अवैध निर्माणों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई जबकि इन्हें 27 सितम्बर 2018 को ही तोड़ने के आदेश दिए गए हैं.
क्या लिखा है NGT के आदेश में
NGT के आदेश में साफ़ साफ लिखा है कि 1992 के नोटिफिकेशन के अनुसार (कालम 5) खसरा नंबर 659 और 920 वन विभाग की जमीन है, प्रतिवादी ने कहा है कि यह उनकी पैत्रिक संपत्ति है और सिर्फ गेट एवं चारदीवारी के निर्माण के अलावा कोई बड़ा निर्माण नहीं करवाया गया है.
आदेश में सुप्रीम कोर्ट द्वारा कांत एन्क्लेव पर दिए गए आदेश और पंजाब लैंड रिजर्वेशन एक्ट 1990 का जिक्र करते हुए कहा है कि वन विभाग की जमीन PLP एक्ट के अंतर्गत आती है, जमीन पर कोई कब्जा नहीं कर सकता.
आदेश में कहा गया है कि एक तरफ प्रतिवादी के वकील का कहना है कि यह पारिवारिक संपत्ति है, अगर ऐसा है तो उन्हें ऑब्जेक्शन करना चाहिए लेकिन ऐसा करने के बजाय प्रतिवादी के वकील का कहना है कि सिर्फ गेट एवं चारदीवारी का निर्माण किया गया है. यहाँ पर निर्माण या जमीन के मालिकाना हक का सवाल नहीं है, सवाल यह है कि जब ये वन विभाग की जमीन है तो फारेस्ट कंजर्वेशन एक्ट के तहत बिना परमिशन के कोई निर्माण हो ही नहीं सकता.
यहाँ पर साफ़ है कि निर्माण के लिए कोई परमीशन नहीं ली गयी है. याचिकाकर्ता के वकील का कहना है कि जमीन पर पक्का निर्माण किया गया है इसलिए प्रतिवादी के वकील की बातों में हैं कोई मेरिट नजर नहीं आ रहा है.
तोड़ा जाय अवैध निर्माण, फिर से बनाया जाए जंगल: NGT
NGT ने अपने आदेश में साफ़ साफ कहा है कि नोटिफिकेशन और जरूरी कानूनों का पालन किया जाय, अगर वन विभाग की जमीन पर कोई भी निर्माण हुआ है तो उसे हटाया जाय और जमीन को पुरानी अवस्था में लाया जाय.
इस मामले में इन 7 अफसरों को पार्टी बनाया गया है -
- सचिव, पर्यावरण मंत्रालय, केंद्र सरकार, नई दिल्ली
- सचिव, पर्यावरण विभाग, हरियाणा सरकार, चंडीगढ़
- मुख्य सचिव, हरियाणा सरकार, चंडीगढ़
- प्रिंसिपल चीफ कंजरवेटर ऑफ़ फारेस्ट, वन भवन, पंचकूला
- चेयरमैन, हरियाणा स्टेट पॉल्यूशन कण्ट्रोल बोर्ड, पंचकूला
- कमिश्नर, नगर निगम फरीदाबाद
- एडमिनिस्ट्रेटर, HUDA, फरीदाबाद
इन सातों अफसरों को कोर्ट के आदेश का जिक्र करते हुए 21-12-2018 को लीगल नोटिस भेजा गया उसके बाद भी अवैध निर्माण के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई.
हरियाणा सरकार, केंद्र सरकार के उपरोक्त विभागों एवं MCF कमिश्नर को बार बार नोटिस भेजने के बाद भी अवैध निर्माण के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हुई, याचिकाकर्ता का कहना है कि ये अफसर कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन कर रहे हैं, अपनी ड्यूटी जिम्मेदारी से नहीं निभा रहे हैं इसलिए हम अगली सुनवाई में इनको नौकरी से बर्खास्त करने की मांग करेंगे.
याचिकाकर्ता ने बताया कि 11 फ़रवरी को इस मामले की अगली सुनवाई है, पिछले आदेश में कोर्ट ने उपरोक्त अफसरों को फटकार लगाते हुए कहा था कि अवैध निर्माण तोड़कर फाइनल रिपोर्ट दें लेकिन अब तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है. अब मैं इन अफसरों के खिलाफ भी कार्यवाही की मांग करूँगा क्योंकि इनकी वजह से ही अरावली पर अवैध निर्माण हुए हैं.
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