फरीदाबाद, 7 नवंबर: फरीदाबाद की मेयर सुमन बाला अब बुरी तरह से फंस गयी हैं, उनकी जाति का मामला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है, अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुँच गया है, सुप्रीम कोर्ट ने फरीदाबाद के डिप्टी कमिश्नर, हरियाणा के चुनाव आयुक्त और फरीदाबाद की मेयर सुमन बाला को तलब कर लिया है, इस मामले में तीनों से उनका पक्ष रखने को कहा जाएगा, अगर सुमन बाला अपना पक्ष नहीं रख पायीं तो ना सिर्फ उनका मेयर पद जाएगा, उन्हें पार्षद पद से भी बर्खास्त किया जाएगा.
आपकी जानकारी के लिए बता दें पिछले नगर निगम चुनाव में सुमन बाला ने पहली बार चुनाव लड़ा था, उन्हें बिना किसी अनुभव के ही मेयर जैसे अहम पद पर बैठा दिया गया था जो कई लोगों की आँखों में चुभ गया क्योंकि फरीदाबाद जनसँख्या के मामले में दिल्ली के बाद NCR का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. इतना बड़े शहर की जिम्मेदार एक जीरो अनुभवी के हाथों में देने को कई लोग पचा नहीं पाए.
उनके खिलाफ कोर्ट में मामला गया लेकिन जिला अदालत ने सुमन बाला की जाति प्रमाण पत्र को सही माना, याचिकाकर्ता ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की जिसके बाद तीनों को तलब किया गया है.
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने फरीदाबाद में प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि मेयर सुमन बाला की जाति प्रमाण पत्र कई मामलों में संदेह पैदा कर रहा है, मेयर ने अपने हलफनामे में बताया कि उन्होंने अपनी कॉलेज की शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से की लेकिन उस दौरान उन्होंने अपनी जाति संबंधी कोई साक्ष्य नहीं दिखाया इसी तरह जब उन्होंने पार्षद के लिए अपना नामांकन भरा तभी उन्होंने 39 साल की उम्र में पहली बार अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाया।
आपकी जानकारी के लिए बता दें पिछले नगर निगम चुनाव में सुमन बाला ने पहली बार चुनाव लड़ा था, उन्हें बिना किसी अनुभव के ही मेयर जैसे अहम पद पर बैठा दिया गया था जो कई लोगों की आँखों में चुभ गया क्योंकि फरीदाबाद जनसँख्या के मामले में दिल्ली के बाद NCR का दूसरा सबसे बड़ा शहर है. इतना बड़े शहर की जिम्मेदार एक जीरो अनुभवी के हाथों में देने को कई लोग पचा नहीं पाए.
उनके खिलाफ कोर्ट में मामला गया लेकिन जिला अदालत ने सुमन बाला की जाति प्रमाण पत्र को सही माना, याचिकाकर्ता ने इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में शिकायत की जिसके बाद तीनों को तलब किया गया है.
इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने फरीदाबाद में प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि मेयर सुमन बाला की जाति प्रमाण पत्र कई मामलों में संदेह पैदा कर रहा है, मेयर ने अपने हलफनामे में बताया कि उन्होंने अपनी कॉलेज की शिक्षा दिल्ली यूनिवर्सिटी से की लेकिन उस दौरान उन्होंने अपनी जाति संबंधी कोई साक्ष्य नहीं दिखाया इसी तरह जब उन्होंने पार्षद के लिए अपना नामांकन भरा तभी उन्होंने 39 साल की उम्र में पहली बार अपना जाति प्रमाण पत्र बनवाया।
वकील का कहना है कि अगर कॉलेज में दाखिला लेते समय उन्होंने अपनी जाति जनरल बताई तो फिर पार्षद के इलेक्शन के समय उन्होंने अपने आप को रिजर्व कैटेगरी में क्यों दिखाया और अगर कॉलेज में उन्होंने खुद को रिज़र्व केटेगरी से बताया था तब उन्होंने जाति प्रमाण पत्र क्यों नहीं बनवाया। वकील का कहना है कि यह सब बातें संदेह पैदा करती हैं लिहाजा सच्चाई सबके सामने आए इसलिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।
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